उनका
कहना है, “सोचा नहीं था, कभी नाटक लिखूँगा| सोचा तो ये भी नहीं था कि नाटक करूँगा|
बचपन से एक रुझान था, विद्यालय में शिक्षकों ने बलात नाटक करने के लिए धकेल दिया,
और वहीं से सिलसिला चल पड़ा|” ये कथन किसी बहुत बड़े चित्रपट-सितारे, लेखक या
कुख्यात व्यक्ति के नहीं हैं, वरन सीधी में विगत कई वर्षों से रंगमंच में सक्रिय
रंगकर्मी ‘प्रसन्न सोनी’ के हैं| प्रसन्न न मात्र सीधी में बल्कि भोपाल,
दिल्ली में रहकर भी रंगमंच कर चुके हैं, और करते रहते है| उनकी अभिनय क्षमता का
बड़े-बड़े रंगकर्मियों ने लोहा माना है| रंगमंच में अभिनय और निर्देशन के साथ-साथ प्रसन्न
भी लिखते हैं|
उन्होंने नाटक लिखा है, उसके कई मंचन भी हो चुके हैं, और अब वह नाटक पुस्तक बन चुका है, यह पुस्तक पाठकों के लिए आगामी 6 जनवरी, 2018 से दिल्ली प्रगति मैदान में, विश्व पुस्तक मेले में शिवना प्रकाशन के विक्रय केन्द्र पर उपलब्ध होने वाली है|
उन्होंने नाटक लिखा है, उसके कई मंचन भी हो चुके हैं, और अब वह नाटक पुस्तक बन चुका है, यह पुस्तक पाठकों के लिए आगामी 6 जनवरी, 2018 से दिल्ली प्रगति मैदान में, विश्व पुस्तक मेले में शिवना प्रकाशन के विक्रय केन्द्र पर उपलब्ध होने वाली है|
पुस्तक
का नाम अभी तक नहीं बताया? अवश्य ही पाठकों में इसकी जिज्ञासा भी होगी| उसका नाम
भी बताया जाएगा, किन्तु उससे पूर्व यह जाना जाय कि नाटक है किस विषय पर, और वह
हिन्दी रंगमंच के लिए महत्वपूर्ण क्यों होगी?
कई
लोग सोचते हैं, “हमें कोई अच्छा-सा काम मिल जाय, अच्छा वेतन मिलने लगे, विवाह हो
जाय, एक अपना व्यक्तिगत घर-बंगला हो, अपनी गाड़ी हो जीवन सुख से कट जाएगा|” प्रसन्न
का नाटक इसी अतिहर्षिता में जीने वालों को सचेत करता है|
चलिए
विषय को अधिक रहस्य न बनाते हुए, नाटक का नाम उद्घोषित कर दिया जाय| तो पाठक जनों
नाटक का नाम है ‘भँवरा बड़ा नादान’| ‘भँवरा बड़ा नादान’ कहानी है एक
ऐसे व्यक्ति (शंकरन गुरु) की; जो छोटे से संघर्ष के बाद, चित्रपट जगत का एक महान व्यक्तित्व बन चुका है| स्वयं बहुत-बड़ा निर्माता-निर्देशक है| जिसके निर्देशन में आनन्द
जैसे सितारा अभिनेता भी काम करना बड़ी बात मानते हैं| शंकरन की प्रेमिका, बाद में
पत्नी मीता भी फ़िल्म जगत की सितारा गायिका एवं अभिनेत्री हैं| शंकरन गुरु के पास
जब्बार जैसा बहुमुखी प्रतिभा का धनी सहयोगी है, और अमोल मित्र जैसे लेखक और
परामर्शदाता| शंकरन और मीता विवाह कर लेते हैं, और दोनों का जीवन अत्यन्त सुखमय
बीतता है, उनकी एक बच्ची भी हो चुकी है| फिर अचानक शकरन गुरु और मीता के सम्बन्धों
में खिंचाव आने लगता है| उनके मध्य बढ़ने वाली दूरी का कारण क्या है? इस खिंचाव का
अन्त कैसे होता है? यही जानने के लिए ‘भँवरा बड़ा नादान’ पढ़ने की आवश्यकता
है|
नाटक
में कहानी के साथ-साथ उसकी नाटकीयता, उसके सम्वाद, चारित्रिक विश्लेषण का अद्भुत
समागम है| उसका एक-एक सम्वाद पाठक को सोचने पर विवश करता है| जैसे-“पता है रतन! जो
शक दिमाग में एक बार पनप जाता है, वो साँप जैसा होता है| मौका पाते ही डस लेता है|
फिर? फिर इंसान का अंग-अंग शिथिल हो जाता है| जैसे-जैसे ज़हर फैलता है, इंसान कमज़ोर
और विवश हो जाता है|” यह सम्वाद जहाँ जीवन के लिए उपदेश भी देता है, वहीं व्यक्ति
को परस्पर शंका जैसी बीमारी से बचने के लिए सचेत भी करता है| नाटक में चरित्रों
में विविधता, उनमें भाव-प्रवणता निर्देशक व अभिनेताओं को मंच पर उतारने के लिए कई
कौशल विकसित करते है| हिन्दी भाषा में सहस्त्रों नाटक लिखे गये हैं, उतनों का ही विदेशी
भाषा से अनुवाद किया गया है, ऐसी भीड़ में भी ‘भँवरा बड़ा नादान’ रंगमंच के लिए बहुत
उपयोगी सिद्ध होगा| यह कैसे उपयोगी होगा, इसका निर्णय एकमात्र कोई एक व्यक्ति नहीं कर सकता,
बल्कि कई पाठकों एवं रंगकर्मियों के माध्यम से होगा|
लगता है लिखने से अधिक श्रेष्ठ होगा कि पाठक एवं रंगकर्मी जन स्वयं
पुस्तक लेवें, पढ़ें और अपनी समझ बनाएँ|