रंगदूत

Tuesday, 19 December 2017

रंगदूत एक नज़र में...

रंगदूत सीधी मात्र कुछ लोगों का समूह ही नहीं है, वरन यह अपने शब्द को पूर्ण सार्थकता प्रदान करने वाली एक दृढ़प्रतिज्ञ संस्था है| ‘रंग’ अर्थात् ‘नाटक’ और  ‘दूत’ अर्थात् ‘सन्देशवाहक’| रंगदूत ने दूत परम्परा का दायित्व मात्र शब्दों से ही नहीं लिया है, बल्कि अपने औपचारिक गठन के पूर्व से ही, निरन्तर शहरों और गाँवों में तत्परता से निर्वहन भी कर रहा है|
सीधी के प्रख्यात कवि रामचन्द्र सोनी ‘विरागी’ के अनुसार सीधी में रंगमंच 1975 से ही हो रहा है, परन्तु इसमें नियमितता नहीं थी| 90 के दशक में कुछ युवाओं दीपक पाण्डेय, अशोक तिवारी, मोहम्मद रफ़ी इत्यादि ने शहर में नाट्य परम्परा को विकसित करने का प्रयत्न किया था, परन्तु तब भी सीधी रंगमंच मात्र सीधी और रीवा तक ही सीमित रहा आया| वर्ष 2006 में प्रसन्न सोनी द्वारा रंगदूत सीधी नाम से अपनी संस्था स्थापित किया गया| इसी वर्ष संस्था ने प्रसन्न सोनी के निर्देशन में स्वतंत्र रूप से अपना पहला नाटक ‘क़स्बा’ प्रस्तुत किया| प्रसन्न के निर्देशन में यह पहला नाटक था| यहीं से रंगदूत ने अपनी रंगयात्रा प्रारम्भ की|  
रंगदूत सदैव स्वस्थ्य मनोरंजन का पक्षधर रहा है| साथ ही सीधी के दर्शकों को नाटकों का आदी बनाकर उनके महीने के ख़र्च में नाटकों के टिकिट्स को जगह दिलाने का प्रयास बदस्तूर जारी है| इसके अतिरक्त रंगदूत ने सीधी में एक सर्व सुविधायुक्त प्रेक्षागृह की माँग भी उठाई है, जिसे कई बार मंचों के माध्यम से उद्घोषित भी किया गया है| संस्था ने लोगों के विकास एवं शिक्षा पर सदा ही विशेष ध्यान दिया है, साथ ही गाँव-गाँव पहुँच कर लोगों को उनके अधिकारों से अवगत कराने का प्रयास भी किया है|
यद्यपि रंगदूत अभी अपने शैशव अवस्था में ही है, और संसाधनों का अभाव भी रहा है, पश्चात् इसके भी शहर में रंगमंच का सार्थक माहौल बनाने के लिए, इसके कलाकार सदैव प्रतिबद्ध रहे हैं| इसी उद्देश्य की पूर्ति की राह में संस्था ने अब तक कई बड़े-बड़े आयोजन भी कर लिये हैं| लगातर तीन वर्ष राष्ट्रीय बीरबल नाट्य समारोह, और बांडुंग इंडोनेशिया में दो नाटकों की प्रस्तुति संस्था की सबसे बड़ी उपलब्धि है| इसके अतिरिक्त बच्चों के साथ कई नाट्य कार्यशालाएँ,  एवं बड़ो के साथ साप्ताहिक प्रशिक्षण आयोजित करती रही है| संस्था ने रंग अलख नाट्य समारोह, रंग त्रिवेणी नाट्य उत्सव, कादम्बरी नाट्य समारोह एवं भारत भवन द्वारा आयोजित मध्य प्रदेश नाट्य उत्सव, उत्तर मध्य क्षेत्र संस्कृति केंद्र, जैसे प्रतिष्ठित समारोहों में अपनी प्रस्तुतियाँ दी हैं|
रंगदूत ने जो भी नाटक किये हैं, उनके पीछे सामजिक सरोकारों को बहुत ही स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया| वसुधैव कुटुम्बकम का सन्देश देने वाला राष्ट्र कई बार दंगों के कारण अकाल काल का ग्रास बन चुका है| विभिन्न समुदायों के लोग जो आपस में मैत्री भाव से रहते थे, वे आपस में शत्रु होते गये| नाटक ‘क़स्बा’, और ‘दंगे जब भी होते हैं’ ने दंगों के वीभत्स स्वरुप को समाज के सामने प्रस्तृत कर “अहिंसा परमो धर्मः” का सन्देश दिया है| जब राष्ट्र की राजनीति स्वार्थ परक और वंशवादी होने लगी, उसके कारण प्रतिभा सम्पन्न लोगों को वंचित किया जाने लगा, आदर्शों और सिद्धान्तों को ताक पर रख पूर्ण निजता की ओर गिरने लगी, तब रंगदूत ने ‘गुड़ गोबर गंज डेज़’ और ‘सैयां भये कोतवाल’ के माध्यम से राजनीति का वास्तविक कुरूप रूप प्रस्तुत किया है, कुशल व्यक्ति के हाथ में नेतृत्व देने की माँग पर ज़ोर दिया| प्रेम पर बलिदान की कहानी, और प्रेम को उपहास बना देने वाले लोगों को प्रेम के वास्तविकता से ‘दास्तान-ए-लैला मजनूँ’ और ‘एक हसींना पाँच दीवाने’ के माध्यम से परिचय कराया| विदर्भ, बुन्देलखण्ड पंजाब और समूचे भारत में सूखे के कारण किसानों की और बेरोजगारी, आज भी सामन्तवादी प्रथा के कारण युवाओं की आत्महत्या बढ़ी है| ‘मोहनदास’ और ‘अकाल में उत्सव’ ने निर्धनता, लाचारी और सूखे की विभीषिका का सजीव चित्रण किया है| ‘तोता बोला’, और ‘थैंक्यू बाबा लोचनदास’ के माध्यम से ग्रामीण परिवेशों में फैले अन्धविश्वासों पर गहरा कटाक्ष किया है रंगदूत ने| रंगदूत ने भारतीय आस्था को ध्यान में रखते हुए इसके पौराणिक कथाओं का भी पूर्ण सम्मान करते हुए ‘आनन्दरघुनन्दन’ एवं ‘अहल्या’ जैसे नाटकों का भी मंचन किया है| इन नाटकों के माध्यम से रंगदूत ने समाज को आदर्श समाज एवं नारी की पौराणिक एवं वर्तमान स्थिति को स्पष्ट किया है| बच्चों को नाटकों से जोड़ने, उनमें कला माध्यम को विकसित करने के लिए बाल नाट्य कार्यशाला के माध्यम से ‘अन्धों में काना राजा’ एवं, ‘मक्खीचूस’ जैसे बाल नाट्यों का ग्रामीण क्षेत्रों में मंचन भी किया है| यही नहीं रंगदूत ने फ़िल्मों के सितारे निर्माता-निर्देशक एवं अभिनेता गुरुदत्त पर आधारित नया नाटक ‘भँवरा बड़ा नादान’ एवं पौराणिक कथा आधरित काव्य नाटक ‘अहल्या’ के रूप दो नये नाटक भी नाट्य जगत को दिया है| ‘भँवरा बड़ा नादान’ रंगदूत के संचालक प्रसन्न सोनी, एवं ‘अहल्या’ संस्था के सक्रिय सदस्य एवं मिडिया प्रभारी जितेन्द्र देव पाण्डेय ‘विद्यार्थी’ द्वारा लिखित हैं|
इंडोनेशिया में नाटक अहल्या की प्रस्तुति में 'अहल्या' के रूप में संस्था की निदेशक व अभिनेत्री भारती शर्मा सोनी 
कहा जाता है “बीरबल इसी सीधी के घोघरा में जन्में थे, यहीं बड़े हुए थे| बाद में अकबर के दरबार में नौरत्न के रूप में पहुँचे थे| बीरबल को सीधी में भी मात्र चुटकुलों तक ही सीमित कर दिया गया था| ऐसे बीरबल को सीधी में पुर्स्थापित करने के उद्देश्य से ही रंगदूत ने राष्ट्रीय बीरबल नाट्य समारोह का आयोजन प्रारम्भ किया है, जू कि प्रतिवर्ष सफलता पूर्वक आयोजित हो रहा है|
रंगदूत एक कुशल रंगकर्मी एवं कलाकारों का नाट्य समूह है| इसके संचालक प्रसन्न सोनी सीधी से रंगकर्म प्रारम्भ करते हुए अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक अपनी रंग प्रस्तुति दे चुके हैं| प्रसन्न की पचमढ़ी में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा आयोजित एक कार्यशाला में प्रख्यात नाट्य निर्देशक अलखनन्दन से भेंट हुई| इसके पश्चात् प्रसन्न की रंगयात्रा प्रारम्भ हुई| प्रसन्न ने अलखनन्दन के द्वारा संचालित नटबुन्देले में रहकर अजातघर जैसे नाटक में मुख्य भूमिका का निर्वहन किया है| इसके अतिरिक्त चन्दा बेड़नी, महानिर्वाण, भगवतअज्जुकम, ताम्रपत्र जैसे नाटकों में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ की| इन नाटकों में देश के दिग्गज अभिनेता आलोक चटर्जी और इरफ़ान सौरभ का सानिध्य भी प्राप्त हुआ| तत्पश्चात दो वर्ष श्री राम सेंटर, एवं राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, रंगमण्डल में दो-दो वर्ष रहकर राजिन्दरनाथ, रंजीत कपूर, अनुराधा कपूर, नीलम मान सिंह, कीर्ति जैन, विवेक मिश्रा जैसे बड़े-बड़े निर्देशकों के निर्देशन में जिन लाहौर नहीं वेख्या वो जम्या ही नहीं, आदमज़ात, चेख़व की दुनिया, पञ्चलाइट जैसे नाटकों में अभिनय किया है| साथ ही उपरोक्त रंगदूत द्वारा प्रस्तुत समस्त नाटकों का निर्देशन भी किया है| प्रसन्न सोनी संस्कृति मंत्रालय भारत सर्कार द्वारा जूनियर फेलोशिप भी प्राप्त कर चुके हैं|
संस्था की निर्देशिका भारती शर्मा सोनी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से 2012 की स्नातक हैं, एवं अभिनय के क्षेत्र में विशिष्टता प्राप्त किया है| भारती ने भी देश के प्रख्यात निर्देशकों अनुराधा कपूर, प्रसन्ना, शान्तनु बोस, कीर्ति जैन त्रिपुरारी शर्मा के सानिध्य में रहकर अभिनय की बारीकियाँ सीखी हैं| पञ्चलाइट, आदमज़ात मौन एक मासूम सा, कसुमल सपनो, तोता बोला, लागी छूटे ना, भँवरा बड़ा नादान, अहल्या, जैसे नाटकों में अपने अभिनय क्षमता से दर्शकों को अभिभूत किया| भारती ने महेश भट्ट के प्रोडक्शन में कराँची, पाकिस्तान में डैडी नामक फ़िल्म में अभिनय, इंडोनेशिया के बांडुंग में अहल्या नामक काव्य नाट्य में अभिनय, एवं चीन में प्रस्तुति दी है| इसके साथ ही बाबुजी एक टिकट बम्बई नामक फ़िल्म में प्रसिद्द अभिनेता राजपाल यादव के साथ मुख्य भूमिका का निर्वहन किया है| इसके अतिरिक्त भारती ने दर्प चूर्ण जैसे कई नाटकों का निर्देशन भी किया है|
नाटक अकाल में उत्सव के मंचन के दौरान संस्था के कलाकार 
संस्था के कलाकर सदस्य रवि शंकर भारती मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय से स्नातक है| रवि शंकर ने संजय उपाध्याय, अलोक चटर्जी, उषा गांगुली, योगेन्द्र चौबे, देवेन्द्र राज अंकुर, त्रिपुरारी शर्मा जैसे कई प्रख्यात रंगकर्मियों के निर्देशन में अभिनय की बारीकियाँ सीखी हैं, और आज रंगदूत में नियमित रूप से उसके माध्यम से नवागंतुक कलाकारों को लाभान्वित करा रहे हैं| रवि शंकर ने जामुन का पेड़, गुल्ली डंडा, अंधों का हाथी, अन्धा युग जैसे नाटकों का निर्देशन भी किया है| इसके अतिरिक्त समझौता, कालकोठरी, मालती माधव, लोवर डेथ, गगन दा मामा बाजियो, ग्लोबल रजा, युग दृष्टा, मुख्तारा, अपना-अपना वाद्य जैसे कई नाटकों में गंभीर अभिनय किया है|
संस्था के कलाकर सदस्य एवं मिडिया प्रभारी जितेन्द्र देव पाण्डेय ‘विद्यार्थी’ भी रंगदूत के प्रारम्भिक सदस्य हैं| इन्होंने रंगदूत के साथ-साथ नट बुन्देले भोपाल में अलखनन्दन के सानिध्य में कई नाटकों में मंच पर एवं मंच परे महत्वपूर्ण भूमिकाओं का निर्वहन किया है| विद्यार्थी द्वारा अभिनीत नाटकों में बारह सौ छब्बीस बटा सात, राजा का बाजा, क़स्बा, दंगे जब भी होते हैं, गुड़ गोबर गंज डेज़, थैंक्यू बाबा लोचनदास, एवं नट बुन्देले में रहकर भगवतअज्जुकम, महानिर्वाण, चारपाई, ताम्रपत्र जैसे कई नाटकों में अभिनय किया है| साथ भी शेक्सपियर लिखित नाटक हेमलेट, एवं स्वरचित शूद्र का निर्देशन भी किया है| विद्यार्थी अब तक लगभग 200 से अधिक कविताओं, लेखों, नुक्कड़ नाटकों का लेखन भी कर चुके हैं| रंगमंच के अतिरिक्त विद्यार्थी कैवल्या एज्युकेशन फाउंडेशन द्वारा सामाजिक एवं शिक्षा के क्षेत्रों फेलोशिप भी प्राप्त कर चुके हैं| साथ ही विद्यार्थी सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से जन-जागरूकता के लिए निरन्तर कार्य एवं विभिन्न पत्रिकाओं में लेख के माध्यम से ग्रामीण लोगों को अधिकारों एवं उन्हें जागरूक करने का कार्य कर रहे हैं|
रंगदूत को सीधी के प्रसिद्द नाट्य निर्देशक अशोक तिवारी, सुशील त्रिपाठी, धीरज सिंह जैसे वरिष्ठ रंगकर्मियों का मार्गदर्शन प्राप्त होता रहता है| वर्तमान समय में रोशन अवधिया, सूरज अवधिया, पूनम दाहिया, मीना गुप्ता, गगन अवधिया, जागृति गुप्ता, राहुल गुप्ता, आदित्य वर्मा, सुनील रावत, श्रोती सिंह, साक्षी गोपाल, देवेन्द्र सोनी, अनन्त मिश्रा, अजय दहिया जैसे युवा कलाकार निरन्तर रंगदूत में अपना योगदान दे रहे हैं|
रंगदूत इन युवाओं को प्रशिक्षित करने के लिए सीधी से बाहर के कई विषय-विशेषज्ञ कलाकारों को आमन्त्रित करता रहता है| संस्था ने अभी तक मुखौटा निर्माण के लिए भारतेन्दु नाट्य अकादमी से स्नातक सुग्रीव विश्वकर्मा, संगीत प्रशिक्षण हेतु बॉलीवुड फिल्मों एवं धारावाहिकों में संगीत दे चुके अभिषेक त्रिपाठी, नृत्य एवं कोरियोग्राफी के लिए बालाघाट जबलपुर से प्रवीण नागेश्वर, प्रकाश सञ्चालन, एवं प्ररचना (डिज़ाइन) के लिए पंजाब से गुरविंदर सिंह जैसे दक्ष लोगों को आमंत्रित किया है| इसके अतिरक्त सिंगरौली ज़िले के देवसर में संस्था ने अनुसूचित जाति एवं जनजाति के बच्चों के साथ एक माह की प्रस्तुति परक नाट्य कार्यशाला का आयोजन किया जिसमें प्रशिक्षको ने बच्चों के घरों तथा मोहल्लों में जाकर प्रशिक्षण भी दिया| रंगदूत का रंगमंच मात्र शहर तक ही सीमित नहीं है, वरन गाँव-गाँव जाकर नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता भी फैलाता रहता है|
समग्रता में देखा जाय तो रंगदूत वास्तव में एक दूत की भाँति सक्रिय रूप से जन-जन तक रंगमंच का सन्देश प्रेषित कर रहा है| इसके प्रत्येक सदस्य पूर्ण प्रतिबद्धता के साथ राष्ट्र और समाज के प्रति अपने स्तर के उत्तरदायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं| दूत का कार्य सन्देश पहुँचाना होता है, और रंगदूत इसमें नामानुरूप शब्दशः इस कार्य में निरन्तर अग्रसर है, इस बात में कोई सन्देह नहीं है|           #



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