रंगदूत

Sunday, 24 December 2017

चोर नहीं, वह माँ थी...

रोशन अवधिया 

अभी-अभी ही लोगों ने राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर
'मातृ दिवस' के कार्यक्रम का बड़े ही भव्य तरीके से सम्पन्न किया था, और मुझे अख़बार में आज ये खबर पढ़ने को मिल गई।  ख़बर पढ़ के मुझे कुछ समझ

नहीं आ रहा था कि क्या मैं उसी देश की ख़बर पढ़ रहा हूँ, जहाँ लोग नारी को 'शक्ति' का प्रतीक मानते है? नारी के हर रूप को इस देश मे इज्ज़त मिली है; लेकिन मुझे आज बहुत अजीब लगा,  मैं अन्दर से अपने आप को कोस रहा था। कल मेरे हाथों में उसी औरत की लाश थी, जिसका ज़िक्र आज अखबार का पहला पन्ना कर रहा था। ख़बर थी कि एक औरत को किसी आदमी द्वारा जिला-अस्पताल में भर्ती कराया गया, और उसी समय उस औरत की मौत हो गई। सूत्रों के मुताबित पता चला है कि वो औरत घायल अवस्था मे बस स्टैंड में पाई गई। लोगों ने बताया कि वो औरत वहाँ आस-पास की दुकानों में चोरी करते पकड़ी गई, और स्थानीय लोगों द्वारा हिंसात्मक तरीके से उसकी पिटाई कर दी गई, जिस कारण उसकी मृत्यु हो गई।
मुझे अभी भी याद है कि उस औरत ने मुझे बेटा कहा था, और वो बार-बार यही बोल रही थी “बेटा मुझे बचा ले, मेरे घर में मेरे बच्चें भूखे है...... ।” फिर अचानक उसकी आवाज़ किहीं गुम हो गई। मैं कुछ नहीं कर सका, सिर्फ उसकी एक बात मेरे दिल-ओ-दिमाग को बार-बार यही चोट पहुँचा रही थी कि उसने सिर्फ अपने भूखे बच्चों के लिए चोरी की थी। एक माँ द्वारा अपने बच्चों की भूख मिटाने में की गई चोरी में अगर उसको मौत मिली, तो फिर उनको क्यों नहीं मौत मिलती, जो करोड़ो बच्चों को भूखा रख कर अपने फ़ायदे के लिए देश मे चोरी कर रहे हैं। जब भीड़ उस बूढ़ी औरत को पीट रही थी, तो सभी को ये पता था कि वो औरत है, लेकिन उस भीड़ में किसी भी इंसान को उस औरत में अपनी माँ नजर नहीं आई। अरे! कठोर दिल इंसान उस औरत के ऊपर हाथ उठाने पर तेरे हाथ नहीं काँपे?
अब इस खबर को पढ़ कर सभी को ये यक़ीन हो गया कि वो बूढ़ी औरत सच मे चोर थी। लेकिन मेरा दिल, मेरा दिमाग मुझसे यही बोल रहा था कि तू जा के सबसे बोल दे कि.....“वो चोर नहीं, वो तो माँ थी"।
आजमा कर देखा जब जग में औरत कब बनती महान है,

भगवान से भी वो लड़ सकती इतनी प्यारी सन्तान है।"

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